पशुओं के अन्तः व बाह्य परजीवियों के बारें में दी ऑनलाइन जानकारी
jagratnews(डेस्क) 13.06.2021
प्रसार शिक्षा निदेशालय, राजस्थान पशुचिकित्सा और पशु विज्ञान विश्वविद्यालय के द्वारा पशु विज्ञान केंद्र, कोटा के माध्यम से पशुपालक कौशल विकास प्रशिक्षण अभियान के अन्तर्गत पांच दिवसीय निःशुल्क ऑनलाइन पशुपालक प्रशिक्षण कार्यक्रम के चतुर्थ दिवस आज पशुओं में अन्तः व बाह्य परजीवी प्रकोप विषय पर विस्तृत जानकारी दी गई। कार्यक्रम के आयोजन सचिव, प्रभारी अधिकारी, पशु विज्ञान केंद्र, कोटा के डाॅ. अतुल शंकर अरोड़ा ने बताया कि प्रशिक्षण शिविर के चतुर्थ दिवस के प्रमुख वक्ता डाॅ. सी.पी. स्वर्णकार, वैज्ञानिक, केन्द्रीय भेड़ एंव ऊन अनुसंधान संस्थान, अविकानगर रहे। डाॅ. स्वर्णकार ने बताया कि परजीवी वह होते है जो अपने रहने व खाने के लिए दूसरे जीव पर निर्भर रहते है। ये पशुओं के बाहर या अन्दर होने के आधार पर बाह्य या अन्तः परजीवी कहलाते है। इनके कारण पशु कमजोर हो जाता है तथा दूधारू पशुओं में दूध देने की क्षमता कम हो जाती है जिससे पशुपालकों को आर्थिक हानि होती है। कभी-कभी इनकी अधिकता से पशु की मृत्यु तक हो सकती है। अतः समय पर उपचार जरूरी है। इसी क्रम में उन्होने पशुओं में बाह्य परजीवी जैसे जूंए, चीचड के कारण होने वाले लक्षणों व उपचार के साथ-साथ बचाव के बारें में विस्तृत जानकारी दी। साथ ही पशुओं में पाए जाने वाले अन्तः परजीवी गोलकृमि, फीताकृमि, यकृतकृमि, एम्फिस्टोमिएसिस व रक्तकृमि से पशुओं में होने वाले लक्षणों, बचाव एंव उपचार के बारें में पशुपालकों को बताया। प्रशिक्षण कार्यक्रम के संचालन में डाॅ. निखिल श्रृंगी व डाॅ. तृप्ति गुर्जर ने सक्रिय भागीदारी निभाई। प्रशिक्षण कार्यक्रम के चतुर्थ दिवस पर 80 से अधिक पशुपालकों ने भागीदारी निभाई एंव लगभग एक तिहाई से अधिक महिला पशुपालक सक्रिय भागीदारी के साथ लाभान्वित हुई। कार्यक्रम के अंत में पशुपालकों की जिज्ञासाओं एंव शंकाओं का भी समाधान किया गया।
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